आधुनिक भारत में ब्रिटिश कालीन शिक्षा पद्धति
आधुनिक भारत में ब्रिटिश
कालीन शिक्षा पद्धति
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने शासन के प्रारंभिक दिनों में भारत में शिक्षा के प्रसार के
लिए प्रचार नहीं किया। इन दिनों कुछ उदार अंग्रेजों, ईसाई मिशनरियों ओर उत्साही भारतीयों ने इस दिशा में प्रयास किया। 1781 में गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्ज ने कलकत्ता मदरसा की स्थापना की, जिसमें फारसी और अरबी का अध्ययन होता था।
अंग्रेजी
शिक्षा के विकास के लिए किये गये कार्य
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1778 में गवर्नर-जनरल हेस्टिंग्स के सहयोगी सर विलियम जोंस ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की जिसने
प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन हेतु महत्त्वपूर्ण प्रयास किये।
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ब्रिटिश रेजीडेंट जोनाथन डंकन द्वारा 1791 में वाराणसी में हिन्दू
कानून और दर्शन हेतु संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई।
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1800 ई. में लार्ड वेलेजली द्वारा कंपनी के असैनिक
अधिकारियों की शिक्षा के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई।
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अंग्रेज धर्म प्रचारक एवं ईसाई मिशनरियों ने भारत में
शिक्षा के प्रसार हेतु श्रीरामपुर (कलकत्ता) को अपना केन्द्र बनाया तथा बाइबिल का 26 भाषाओं में अनुवाद
किया।
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डेविड हेयर नामक एक अंग्रेज ने 1820 में कलकत्ता में विशॅप
कालेज की स्थापना की।
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डेविड हेयर नामक एक अंग्रेज ने 1820 में कलकत्ता में विशॅप
कालेज की स्थापना की।
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राजा राममोहन राय,राधा देव, महाराज तेज सेन चंद्र, रायबहादुर, जयनारायण घोषाल आदि के
प्रयासों से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई।
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राजा राममोहन राय, डेविड हेयर और सर हाईड ईस्ट ने
मिलकर कलकत्ता में हिन्दू कालेज की स्थापना की जो कालांतर में प्रेसीडेंसी कालेज
बना।
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ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा
के क्षेत्र में वास्तविक प्रयास 1813 में किया गया।
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1813 के चार्टर एक्ट में गवर्नर-जनरल को
अधिकार दिया गया कि वह एक लाख रुपये साहित्य के पुनरुद्धार और उन्नति के लिए और
भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा अंग्रेजी प्रदेशों के
वासियों में विज्ञान के आरंभ और उन्नति के लिए खर्च करें।
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